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नाथद्वाराएक घंटा पहले
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जन्म के साथ प्रभु को 21 बार तोपों से सलामी दी गई।
- कोरोना काल के चलते मंदिर भक्तों के लिए बंद रखा गया
- मंगला आरती के दौरान ठाकुर जी को धोती-कपड़े धारण कराए गए
वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा ब्रज संस्कृति से ओतप्रोत होने के कारण, यहां के रीति-रिवाज उत्सव-त्यौहार सभी पर ब्रजभूमि की सांस्कृतिक परम्पराओं का पर्याप्त प्रभाव हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का नाथद्वारा में अपना स्वरूप है। रात 12 बजते ही नंदलाल का जन्म हुआ। वहीं गुरूवार को नंदोत्सव मनाया जाएगा।
निश्चित समय जन्म होने पर घंटानाद हुआ। मोतीमहल की प्राचीर से दो-तीन बार जन्म होने की सूचना स्वरूप बिगूल बजाई गई। जिसके साथ प्रभु को 21 बार तोपों से सलामी दी गई। मंदिर में जन्म होने के साथ ही प्रभु बालकृष्ण लालजी को पुनः पंचामृत से स्नान कराया गया। इसके पश्चात् उन्हें चंदन से स्नान करा श्रीनाथजी की गोद में पधरा दिया गया। फिर दोनों स्वरूपों के तिलक अक्षत चढ़ाकर माला धारण कराते हैं। महाभोग आता हैं।
गद्दे, रजाई और तकिए बनाए गए
मंदिर के रत्न चौक तक सजावट करके मंदिर में ब्रज का उल्लास भर दिया गया। रतन चौक में कुमकुम के कलश, ठाकुरजी के जन्म के लिए 17 किलो रूई से नया गद्दा, रजाई और तकिए रखे गए।

भक्त मंदिर के गेट से ही वापस लौटे।
तीनों स्वरूप पंचामृत से सराबोर
अन्य पर्वों पर श्री मदनमोहनलाल जी या श्री बालकृष्णलाल जी पंचामृत स्नान करते हैं। वहीं, जन्माष्टमी विशिष्ट पर्व होने से श्रीनाथजी सहित तीनों स्वरूप पंचामृत से सराबोर हो जाते हैं। ये दर्शन साल में एक बार ही होते है। इस दौरान थाली-माद्ल, घंटे, झांझ- मृदड्ग, बाजा- सारंगी सहित शंख ध्वनि की गई।
जागरण के दर्शन
रात लगभग 10 बजें जागरण शुरू हुआ। पर्व पर इस दर्शन का विशेष महत्व होता है, लेकिन भक्त इस बार इससे वंचित रहेंगे। करीब 11ः30 बजे श्रीजी के पट बंद होंगे।

मंदिर के आसापास के बाजार खुले।
पंजरी का भोग
श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पंजरी का भोग लगाया जाता हैं। पंजरी सोंठ, अजवाईन, धनिया, काली र्मिच, सौंफ सहित अन्य चीजों को पीसकर घी मिलाकर बनाई जाती हैं। जिसे प्रभु के भोग के पश्चात सेवकों को वितरित की जाती हैं। पंजरी स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम हैं, इसलिए भक्त इस प्रसाद को साल भर घर में रखते है। घरों में अन्न के भंडार में पंजरी रखने से धन-धान्य की कमी नहीं रहती ऐसी मान्यता है।
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